अजीब थी वो
मुहब्बतों की गीत थी , बगावतों की राग थी
कभी
वो सिर्फ फूल थी , कभी वो सिर्फ आग थी
अजीब थी वो
वो मुफलिसों से कहती थी
की दिन बदल भी सकते है
वों जाबिरों से कहती
तुम्हारे सर पे सोने का जो ताज है
कभी पिघल भी सकते है
वो बंदिशों से कहती
की में तुमको तोड़ सकती हूँ
सहूलतों से कहती
की में तुमको छोड़ सकती हूँ
हवाओं से वो कहती की में तुमको मोड़ सकती हूँ
वो ख्वाबों से कहती
की में तुमको सच करूंगी
अजीब थी वो
कभी आग थी वो
कभी फुल थी वो
अजीब थी वो..!
मुहब्बतों की गीत थी , बगावतों की राग थी
कभी
वो सिर्फ फूल थी , कभी वो सिर्फ आग थी
अजीब थी वो
वो मुफलिसों से कहती थी
की दिन बदल भी सकते है
वों जाबिरों से कहती
तुम्हारे सर पे सोने का जो ताज है
कभी पिघल भी सकते है
वो बंदिशों से कहती
की में तुमको तोड़ सकती हूँ
सहूलतों से कहती
की में तुमको छोड़ सकती हूँ
हवाओं से वो कहती की में तुमको मोड़ सकती हूँ
वो ख्वाबों से कहती
की में तुमको सच करूंगी
अजीब थी वो
कभी आग थी वो
कभी फुल थी वो
अजीब थी वो..!
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