Thursday 31 March 2011

शमशान

चुप्पी ख़ामोशी उदासी ओढ़े
हर शमशान
लाशों, लकड़ियों और कफन के
इंतजार में शिद्दत के साथ
मुद्दत से अपनी भूमिका में खड़ा है
न जाने कितनी लाशें
अब तक हो चुकी होंगी पंचतत्व में विलीन
गुमनामी के अँधेरे में खो चुके हैं -
न जाने कितने हाड़-मास के पुतले
स्मृतियों में कुछ शेष रह जाती हैं आकृतियाँ
कुछ आकृतियाँ छोड़ जाती हैं
अपने कामों का इतिहास
-सुनील दत्ता

भगत सिंह द्वारा फांसी के पूर्व पंजाब गवर्नर के नाम लिखा प्रत्र


युद्ध अभी जारी है ......हमें ....गोली से उड़ा दिया जाये
..........महोदय
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बाते .आपकी सेवा में रख रहे हैं -
भारत की ब्रीटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड़यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायधिकर्ण (ट्रिबुनल ) स्थापित किया था ,जिसने 7 अक्टुबर ,1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया | हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया हैं कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया हैं |
न्यायालय के इस निर्णय से दो बाते स्पष्ट हो ज़ाती हैं -पहली यह कि अंग्रेजी जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा हैं |दूसरी यह हैं कि हमने निशचित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है |अत: हम युद्ध बंदी हैं | यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं , तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया हैं |पहली बात के सम्बन्ध में हमें तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं |
हम नही समझते कि प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई हैं | हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या हैं ? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक सन्दर्भ को समझाना चाहते हैं | ......................
युद्ध कि स्थिति
हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ाहुआ हैं और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिको की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा हैं -चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज या सर्वथा भारतीय ही हों ,उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी हैं |चाहे शुद्ध भारतीय पूंजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नही पड़ता |यदि आपकी सरकार कुछ नेताओ या भारतीय समाज के मुखियों पर प्रभाव जमाने में सफल हो जाये ,कुछ सुविधाय मिल जाये ,अथवा समझौते हो जाये ,इससे भी स्थिति नही बदल सकती ,तथा जनता पर इसका प्रभाव बहुत कम पड़ता हैं | हमे इस बात की भी चिन्ता नही कि युवको को एक बार फिर धोखा दिया गया हैं और इस बात का भी भय नहीं हैं कि हमारे राजनीतिक नेता पथ - भर्स्ट हो गये हैं और वे समझौते की बातचीत में इन निरपराध ,बेघर और निराश्रित बलिदानियों को भूल गये हैं ,जिन्हें दुर्भाग्य से क्रन्तिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता हैं |हमारे राजनीतिक नेता उन्हें अपना शत्रु समझते है ,क्योकि उनके विचार में वे हिंसा में विश्वास रखते हैं |हमारी वीरागनाओ ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया हैं |उन्होंने अपने पतियों को बलिबेदी पर भेट किया ,भाई भेट किये ,और जो कुछ भी उनके पास था -सब न्यौछावर कर दिया |उन्होंने अपने आप को भी न्यौछावर कर दिया परन्तु आपकी सरकार उन्हें विद्रोही समझती हैं |आपके एजेन्ट भले ही झूठी कहानिया बनाकर उन्हें बदनाम कर दें और पार्टी की प्रसिद्धी को हानि पहुचाने का प्रयास करें ,परन्तु यह युद्ध चलता रहेगा |
युद्ध के विभिन्न स्वरूप
........................
हो सकता हैं कि यह लड़ाई भिन्न -भिन्न दशाओ में भिन्न -भीं स्वरूप ग्रहण करे |किसी समय यह लड़ाई प्रकट रूप ले ले ,कभी गुप्त दशा में चलती रहे ,कभी भयानक रूप धारण के ले ,कभी किसान के स्तर पर युद्ध जारी रहे और कभी यह घटना इतनी भयानक हो जाये कि जीवन और मृत्यु की बाज़ी लग जाये |चाहे कोई भी परिस्थिति हो ,इसका प्रभाव आप पर पड़ेगा |यह आप की इच्छा हैं की आप जिस परिस्थिति को चाहे चुन लें ,परन्तु यह लड़ाई जारी रहेगी |इसमें छोटी -छोटी बातो पर ध्यान नही दिया जायेगा |बहुत सम्भव हैं कि यह युद्ध भयंकर स्वरूप ग्रहण कर ले |पर निश्चय ही यह उस समय तक समाप्त नही होगा जब तक कि समाज का वर्तमान ढाचा समाप्त नही हो जाता ,प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन या क्रांति समाप्त नही हो जाती और मानवी सृष्टी में एक नवीन युग का सूत्रपात नही हो जाता |
अन्तिम युद्ध .........
निकट भविष्य में अन्तिम युद्ध लड़ा जायेगा और यह युद्ध निर्णायक होगा |साम्राज्यवाद व पूजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं |यही वह लड़ाई हैं जिसमे हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया हैं और हम अपने पर गर्व करते है कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारम्भ ही किया हैं और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा हमारी सेवाए इतिहास के उस अध्याय में लिखी जाएगी जिसको यतीन्द्रनाथ दास और भगवतीचरण के बलिदानों ने विशेष रूप में प्रकाशमान कर दिया हैं | इनके बलिदान महान हैं |जहाँ तक हमारे भाग्य का सम्बन्ध हैं हम जोरदार शब्दों में आपसे यह कहना चाहते हैं कि आपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया हैं |आप ऐसा करेंगे ही |आपके हाथो में शक्ति हैं और आपको अधिकार भी प्राप्त हैं |परन्तु इस प्रकार आप जिसकी लाठी उसकी भैंसवाला सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध हैं |हमारे अभियोग की सुनवाई इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि हमने कभी कोई प्रार्थना नही की और अब भी हम आप से किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नही करते |हम आप से केवल यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग हैं | इस स्थिति में हम युद्धबंदी हैं ,अत:इस आधार परहम आपसे मांग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबन्दियो -जैसा ही व्यवहार किया जाये और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ादिया जाये |अब यह सिद्ध करना आप का काम हैं कि आपको उस निर्णय में विश्वास हैं जो आपकी सरकार के न्यायालय ने किया हैं |आप अपने कार्य द्वारा इस बात का प्रमाण दीजिये |हम विनयपूर्वक आप से प्रार्थनाकरते हैं कि आप अपने सेना -विभाग को आदेश दे दें कि हमें गोली से उड़ाने के लिए एक सैनिक टोली भेज दी जाये |

...............भवदीय
भगतसिंह ,राजगुरु ,सुखदेव
प्रस्तुती सुनील दत्ता

गाँधी जी के नाम खुली चिट्ठी

{ गाँधी जी के नाम सुखदेव की यह खुली चिट्ठी मार्च १९३१ में गाँधी जी और वायसराय इरविन के बीच हुए समझैते के बाद लिखी गई थी जो हिंदी नवजीवन 30 अप्रैल 1931 के अंक में प्रकाशित हुई थी }
परम कृपालु महात्मा जी ,

आजकल की ताज़ा खबरों से मालूम होता है कि{ ब्रिटिश सरकार से } समझौते की बातचीत कि सफलता के बाद आपने क्रन्तिकारी कार्यकर्ताओं को फिलहाल अपना आन्दोलन बन्द कर देने और आपको अपने अहिंसावाद को आजमा देखने का आखिरी मौका देने के लिए कई प्रकट प्राथनाए कई है |वस्तुत ; किसी आन्दोलन को बन्द करना केवल आदर्श या भावना में होने वाला काम नहीं हैं |भिन्न -भिन्न अवसरों कि आवश्यकता का विचार ही अगुआओं को उनकी युद्धनीति बदलने के लिए विवश करता हैं |
माना कि सुलह की बातचीत के दरम्यान , आपने इस ओर एक क्षण के लिए भी न तो दुर्लक्ष किया ,न इसे छिपा ही रखा की समझौता होगा |में मानता हूँ कि सब बुद्धिमान लोग बिलकुल आसानी के साथ यह समझ गये होंगे कि आप के द्वारा प्राप्त तमाम सुधारो का अम्ल होने लगने पर भी कोई यह न मानेगा कि हम मंजिले -मकसूद पर पहुच गये हैं | सम्पूर्ण स्वतन्त्रता जब तक न मिले ,तब तक बिना विराम के लड़ते रहने के लिए कांग्रेस महासभा लाहौर के प्रस्ताव से बंधी हुई हैं | उस प्रस्ताव को देखते हुए मौजूदा सुलह और समझैता सिर्फ काम चलाऊ युद्ध विराम हैं |जिसका अर्थ येही होता होता हैं कि अधिक बड़े पएमाने पर अधिक अच्छी सेना तैयार करने के लिए यह थोडा विश्राम हैं ........
किसी भी प्रकार का युद्ध -विराम करने का उचित अवसर और उसकी शर्ते ठहराने का काम तो उस आन्दोलन के अगुआवो का हैं | लाहौर वाले प्रस्ताव के रहते हुए भी आप ने फिलहाल सक्रिय आन्दोलन बन्द रखना उचित समझा हैं |इसके वावजूद भी वह प्रस्ताव तो कायम ही हैं |इसी तरह 'हिन्दुस्तानी सोसलिस्ट पार्टी ' के नाम से ही साफ़ पता चलता हैं कि क्रांतिवादियों का आदर्श समाजवादी प्रजातन्त्र कि स्थापना करना हैं |यह प्रजातन्त्र मध्य का विश्राम नही हैं |जब तक उनका ध्येय प्राप्त न हो और आदर्श सिद्ध न हो , तब तक वे लड़ाई जरी रखने के लिए बंधे हुए हैं |परन्तु बदलती हुई परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार वे अपनी युद्ध .निति बदलने को तैयार अवश्य होंगे |क्रन्तिकारी युद्ध ,जुदा ,जुदा रूप धारण करता हैं |कभी गुप्त ,कभी केवल आन्दोलन -रूप होता हैं ,और कभी जीवन -मरण का भयानक सग्राम बन जाता हैं |ऐसी दशा में क्रांतिवादियों के सामने अपना आन्दोलन बन्द करने के लिए विशेष कारणहोने चाहिए |परन्तु आपने ऐसा कोई निश्चित विचार प्रकट नहीं किया |निरी भावपूर्ण अपीलों का क्रांतीवादी युद्ध में कोई विशेष महत्त्व नही होता ,हो भी नही सकता |
आप के समझौते के बाद आपने अपना आन्दोलन बन्द किया हैं ,और फलस्वरूप आप केसब कैदी रिहा हुए हैं |पर क्रन्तिकारी कैदियों का क्या हुआ ?1915 ई . से जेलों में पड़े हुए गदर - पक्ष के बीसो कैदी सज़ा कि मियाद पूरी हो जाने पर भी अब तक जेलों में सड़रहे हैं |मार्शल ला के बीसों कैदी आज भी जिन्दा कब्रों में दफनाये पड़े हैं |येही हाल बब्बर अकाली कैदियों का हैं |देवगढ , काकोरी ,मछुआ -बाज़ार और लाहौर षड़यंत्र के कैदी अब तक जेल कि चहारदीवारी में बन्द पड़े हुए बहुतेरे कैदियों में से कुछ हैं लाहौर ,दिल्ली चटगाँव बम्बई कलकत्ता और अन्य जगहों में कोई आधी दर्जन से ज्यादा षड़यंत्र के मामले चल रहे हैं |बहुसंख्य क्रांतिवादी भागते फिरते हैं ,और उनमे कई इस्त्रिया हैं \सचमुच आधी दर्जन से अधिक कैदी फांसी पर लटकने कि राहदेख रहे हैं | लाहौरषड़यंत्र केस के सजायाफ्ता तीन कैदी , जो सौभाग्य से मशहूर हो गये और जिन्होंने जनता क़ी बहुत अधिक सहानुभूति प्राप्त की हैं ,वे कुछ क्रांतिवादी दल का एक बड़ा हिस्सा नही हैं |उनका भविष्य ही उस दल के सामने एकमात्र प्रश्न नही हैं |सच पूछा जाये तो उनकी सज़ा घटाने की अपेक्षा उनके फांसी पर चढ़ जाने से अधिक लाभ होने की आशा हैं |
यह सब होते हुए भी आप उन्हें अपना आन्दोलन बन्द करने की सलाह देते हैं |वे ऐसा क्यों करे ?आपने कोई निशचित वस्तु की ओर निर्देश नही किया हैं | ऐसी दशा में आपकी प्रथ्र्नाओ का येही मतलब होता है कि आप इस आन्दोलन को कुचल देने में नौकरशाही कि मदद कर रहे हैं ,और आपकी विनती का अर्थ उनके दल को रास्ट्रद्रोह पलायन और विश्वास घात का उपदेश करना हैं |यदि ऐसी बात नही है ,तो आपके लिए उत्तम तो यह था कि आप कुछ अग्रगण्य क्रांतिकारियों के पास जाकर उनसे सारे मामले के बारे में बातचीत कर लेते |अपना आन्दोलन बन्द करने के बारे में पहले आपको उनकी बुद्दी की प्रतीति कर लेने का प्रयत्न करना चाहिए था |में नही मानता किआप भी इस प्रचलित पुरानी कल्पना में विश्वास रखते हैं | में आप को कहता हूँ कि वस्तु इस्थिति ठीक इसकी उल्टी हैं सदैव कोई भी काम करने से पहले उसका खूब सूक्ष्म विचार कर लेते हैं ,और इस प्रकार वे जो जिम्मेदारी अपने माथे लेते हैं ,उसका उन्हें पूरा -पूरा ख्याल होता है |और क्रांति के कार्य में दूसरे किसी भी अंग कि अपेक्षा वे रचनात्मक अंग को अत्यन्त महत्व का मानते हैं |हालाकि मौजूदा हालत में अपने कार्यक्रम के संहारक अंग पर डटेरहने के सिवाए और कोई चारा उनके लिए नही हैं |
उनके प्रति सरकार कि मौजूदा नीति यह है कि लोगो की ओरसे उन्हें अपने आन्दोलन के लिए जो सहानुभूति और सहायता मिली है ,उससे वंचित करके उन्हें कुचल डाला जाये |अकेले पड़ जाने पर उनका शिकार आसानी से किया जा सकता है |ऐसी दशा में उनके दल में बुद्धि -भेद और शिथिलता पैदा करने वाली कोई भी भावपूर्ण अपील एकदम बुद्धिमानी से रहित और क्रांतिकारियों को कुचल डालने में सरकार की सीधी मदद करने वाली होगी | इसलिए हम आप से प्रार्थना करते है कि या तो आप कुछ क्रन्तिकारी नेताओ से बातचीत कीजिये -उनमे से कई जेलों में हैं -और उनके साथ सुलह कीजिये या सब प्रार्थना बन्द रखिये |कृपा कर हित कि दृष्टि से इन दो में से कोई एक रास्ता चुन लीजिये और सच्चे दिल से उस पर चलिए |अगर आप उनकी मदद न कर सके ,तो मेहरबानी करके उन पर रहम करे |उन्हें अलग रहने दें |वे अपनी हिफाजत आप अधिक अच्छी तरह कर सकते हैं ...........
अथवा अगर आप सचमुच ही उनकी सहायता करना चाहते हो तो उनका दृष्टिकोण समझ लेने के लिए उनके साथ बातचीत करके इस सवाल कि पूरी तफसीलवार चर्चा कर लीजिये |आशा है ,आप कृपा करके उक्त प्रार्थना पर विचार करेंगे और अपने विचार सर्व साधारण के सामने प्रगट करंगे |

आपका
अनेको में से एक सुखदेव

सुनील दत्ता
9415370672

भगत सिंह फांसी के समय


लाहोर जेल के चीफ वाडर सरदार चतर सिंह ने बताया कि 23 मार्च , 1931 को शाम तीन बजे ,जब उसे फंसी का पता चला तो वह भगतसिंह के पास गया और कहा कि "मेरी केवल एक प्राथना है कि अंतिम समय में वाहे गुरु का नाम ले ले और गुरुवाणी का पाठ कर ले '|
भगत सिंह ने जोर से हंस कर कहा 'आप के प्यार को शुक्रगुजार हूँ | लेकिन अब जब अंतिम समय गया। मैं ईश्वर को याद करू तो वह कहेगा कि मैं बुजदिल हूँ | सारी उम्र तो उसे याद नहीं किया और अब मौत सामने नजर आने लगी हैं तो ईश्वर को याद करने लगूँ| इसलिए येही अच्छा येही होगा कि मैंने जिस तरह पहले अपना जीवन जिया हैं ,उसी तरह अपना अंतिम समय भी गुजारूं | मेरे उपर यह आरोप तो बहुत लगायेंगे कि भगत सिंह नास्तिक था और उसने ईश्वर में विश्वास नही किया ,लेकिन ये आरोप तो कोई नही लगाएगा कि भगतसिंह कायर बेईमान भी था और अंतिम समय उसके पैर लड़खड़ाने लगे|'
(भगतसिंह - प्रो दीदार सिंह , पन्ना 346 ) दूसरे व्यक्ति ,जो अंतिम दिन भगतसिंह से मिले ,वे उनके परामर्शदाता वकील प्राणनाथ मेहता थे |एकदिन पहले भगतसिंह ने लेनिन की जीवनी की मांग की थी , सो अंतिम दिन मेहता जी लेलिन की जीवनी भगतसिंह को दे गये |
आखरी पलो तक वे बड़ी निष्ठा और एकाग्रचित से लेलिन की जीवनी पढ़ रहे थे |जब जेल के कर्मचारी उन्हें लेने आये तो उन्होंने कहा 'ठहरो एक क्रन्तिकारी के दूसरे क्र्न्तकारी से मिलने में बाधा डालो | और फिर २३ मार्च 1931 को संध्या समय सरकार ने उनसे साँस लेने का अधिकार छीनकर अपनी प्रतिहिंसा की प्यास बुझा ली |अन्याय और शोषण के विरुद्ध विद्रोह करने वाले तीन तरुणों की जिन्दगिया जल्लाद के फंदे ने समाप्त कर दी |फांसी के तख्ते पर चढ़ते भगतसिंह ने अंग्रेज मजिस्ट्रेट को सम्बोधित करते हुए कहा 'मजिस्ट्रेट महोदय आप वास्तव में बड़े भाग्यशाली हैं कयोकि आपको यह देखने का अवसर प्राप्त हो रहा हैं कि एक भारतीय क्रन्तिकारी अपने महान आदर्श के लिए किस प्रकार हँसते -हँसते मृत्यु का आलिगन करता हैं |फांसी से कुछ पहले भाई के नाम अपने अंतिम पत्र में उसने लिखा था ,मेरे जीवन का अवसान समीप है प्रात: कालीन प्रदीप टिमटिमाता हुआ मेरा जीवन -प्रदीप भारत के प्रकाश में विलीन हो जायेगा |हमारा आदर्श हमारे विचार सरे संसार में जागृती पैदा कर देंगे |फिर यदि यह मुठ्ठी भर राख विनष्ट हो जाये तो संसार का इससे क्या बनता बिगड़ता है |जैसे -जैसे भगतसिंह के जीवन का अवसान समीप आता गया देश तथा मेहनतकश जनता के उज्जवल भविष्य में उसकी आस्था गहरी होती गयी | मृत्यु से पहले सरकार सरकार के नाम लिखे एक पत्र में उसने कहा था ,' अति शीघ्र ही अंतिम संघर्ष के आरम्भ की दुन्दुभी बजेगी |उसका परिणाम निर्णायक होगा |साम्राज्यवाद और पूँजीवाद अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहे हैं| हमने उसके विरुद्ध युद्ध में भाग लिया था और उसके लय हमे गर्व हैं।

सुनील दत्ता
9415370672

भगत सिंह का पिता के नाम पत्र

भगत सिंह, भगत सिंह के बाबा पिता

३० सितम्बर ,१९३० को भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिबुनल को एक अर्जी देकर बचाव पेश करने के लिए अवसर की मांग की |सरदार किशनसिंह स्वय देशभक्त थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल जाते रहते थे |
पिता द्वारा दी गयी अर्जी से भगत सिंह की भावनाओ को भी चोट लगी थी ,लेकिन अपनी भावनाओ को नियंत्रित कर अपने सिद्धांतो पर जोर देते हुए उन्होंने 4 अक्टूबर 1930 को यह पत्र लिखा जो उसके पिता को देर से मिला | ७ अक्टूबर ,1930 को मुकदमे का फैसला सुना दिया गया |

4 अक्टूबर 1930
पूज्य पिताजी ,
मुझे यह जानकर हैरानी हुई की आप ने मेरे बचाव -पक्ष के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक आवेदन भेजा हैं |यह खबर इतनी यातनामय थी कि मैं इसे ख़ामोशी से बर्दाश्त नही कर सका |इस खबर ने मेरे भीतर कि शांति भंग कर उथल -पुथल मचा दी हैं |मैं यह नही समझ सकता कि वर्तमान इस्थितियो में और इस मामले पर आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं ?
आप का पुत्र होने के नाते मैं आपकी पैतृक भावनाओ का पूरा सम्मान करता हूँ कि आप को साथ सलाह -मशविरा किये बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नही था |आप जानते हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आप से काफी अलग हैं |में आप कि सहमती या असहमति का ख्याल किये बिना सदा स्व्तन्त्र्तापुर्वक काम करता रहा हूँ |
मुझे यकीन हैं कि आपको यह बात याद होगी कि आप आरम्भ से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिश करते हैं कि में अपना मुकदमा संजीदगी से लडू और अपना बचाव ठीक से प्रस्तुत करू| लेकिन आपको यह भी मालूम है कि में सदा इसका विरोध करता रहा हूँ | मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा प्रकट नही की और न ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया हैं |
मेरी जिन्दगी इतनी कीमती नही जितनी कि आप सोचते हैं |कम -से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नही कि इसे सिद्धांतो को कुर्बान करके बचाया जाये |मेरे अलावा मेरे और साथी भी हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन है जितना कि मेरा मुकदमा | हमने सयुक्त योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे | हमे इस बात कि कोई परवाह नही कि हमे व्यक्तिगत रूप में इस बात के लिए कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा |
पिता जी मैं बहुत दुःख का अनुभव कर रहा हूँ |मुझे भय हैं ,आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आप के इस काम कि निन्दा करते हुए मैं कंही सभ्यता कि सीमाए न लाघ जाऊ और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हो जाये |लेकिन में स्पष्ट शब्दों में अपनी बात अवश्य कहूँगा |यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता |लेकिन आप के सन्दर्भ में मैं इतना ही कहूँगा कि यह एक कमजोरी है -निचले स्तर कि कमजोरी |
यह एक ऐसा समय था जब हम सब का इम्तहान हो रहा था |में यह कहना चाहता हूँ कि आप इस इम्तहान में नाकाम रहे है |में जनता हूँ कि आप भी इतने ही देश प्रेमी है जितना कि कोई और व्यक्ति हो सकता हैं |में जनता हूँ कि आपने अपनी पूरी जिन्दगी भारत कि आज़ादी के लिए लगा दी हैं |लेकिन इस अहम मौड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाई ,यह बात में समझ नही सकता |
अन्त में मैं आपसे ,आपके अन्य मित्रो व मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेने वालो से यह कहना चाहता हूँ कि में आपके इस कदम को नापसंद करता हूँ |में आज भी अदालत अपना बचाव प्रस्तुत करने के पक्ष में नही हूँ |अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकर्ण आदि के लिए प्रस्तुत किये गये आवेदन को मंजूर कर लेती , तो भी में कोई स्पष्टीकर्ण प्रस्तुत न करता |
मैं चाहूँगा की इस समबन्ध में जो उलझने पैदा हो गयी हैं ,उनके विषय में जनता को असलियत का पता चल जाये |इसलिए में आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप जल्द से जल्द यह चिठ्ठी प्रकाशित कर दें |

आपका आज्ञाकारी
भगत सिंह

सुनील दत्ता
9415370672

शहीद दिवस विशेष : क्रांति और जीवन भगत सिंह




क्रांति हौव्वा नही ; भगत सिंह को दो तरह का हौव्वा बनाकर पेश किया जाता रहा है |एक तो व्यहारिकता का कि भगत सिंह पड़ोसी के घर ही अच्छा लगता है -अपने घर में उसका होना आज कि परिस्थितियों में वांछित नही |दूसरा आदर्श का कि विचारो -कार्यशालाओ से भगत सिंह को नही अपनाया जा सकता -उसके लिए जेल और मृत्यु की कामना करने की जरूरत होती हैं |इन दोनों पूर्वाग्रहों के पीछे भगतसिंह की वह छवि काम कर रही होती है जो उनके दो बेहद प्रचलित प्रकरणों -साड्स -वध और असेम्बली -बम धमाका -को एकान्तिक रूप से देकने से बनी हैं | क्योंकि येही प्रकरण उनकी लोकप्रिय छवि का आधार भी बनाए जाते है ,लिहाज़ा उपरोक्त पूर्वाग्रहों को सार्वजनिक रूप से मीन-मेख का सामना प्राय ; नही करना पड़ता |
पर भगतसिंह को पुरवाग्रहो से नही ,तर्क से जानना होगा -एकान्तिक रूप से नही परिपेक्ष में देखना होगा | वे क्रन्तिकारी थे, आतंकवादी नही -तभी उन्होंने कभी भी सांडर्स -वध को ग्लोरिफाई नही किया और असेम्बली में बम फोड़ते समय यह सावधानी भी रखी कि किसी की जान न जाये |वे हाड -मांस के ऐसे मनुष्य थे जिसके प्रेम ,स्वप्न ,जीवन ,राजनीत ,देश -प्रेम गुलामी और धर्म जैसे विषयों पर बेहद लौकिक विचार थे |तभी उन्होंने मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के हर स्वरूप -साम्राज्यवाद ,साम्प्रदायिकता ,जातिवाद ,असमानता ,भाषा वाद ,भेदभाव इत्यादि का पुरजोर विरोध किया |फांसी से एक दिन पूर्व साथियों को अंतिम पत्र में उन्होंने लिखा -स्वाभाविक है कि जीने कि इच्छा मुझमे भी होनी चाहिए ,मैं इसे छिपाना नही चाहता |जब उन्होंने मृत्यु को चुना तब भी लौकिकता और तार्किकता के दम पर ही |अगर वे सिर पर कफन बांधे मृत्यु के आलिंगन को आतुर कोई अलौकिक सिरफिरे मात्र होते तो सांडर्स -वध के समय ही फांसी का वरण कर लेते |सांडर्स -वध के बाद फरारी और असेम्बली बम कांड के बाद ,जब वे भाग सकते थे ,समपर्ण उनकी अदम्य तार्किकता का ही परिचायक है |भगतसिंह से दोस्ती का मतलब उनकी इसी लौकिकता और तार्किकता को आत्मसात करना भी है |इन अर्थो में यह कठिन रास्ता है -न कि जेल ,पुलिस ,मौत जैसे सन्दर्भ में | क्या हम ईमानदारी ,सच्चाई ,साहस ,भाईचारा ,बराबरी और देशप्रेम को अपने जीवन का अंग बनाना चाहते हैं ? क्या हम शोषण के तमाम रूपों को पहचानने और फिर उनसे लोहा लेने कि शुरुवात खुद से ,अपने परिवार से ,अपने परिवेश से कर सकते है ?
यदि हाँ ,तो घर -घर में भगत सिंह होंगे ही जो शोषण के तमाम पारिवारिक ,सामाजिक ,जातीय ,लैगिक ,राजनैतिक ,साम्राज्यवादी व आर्थिक रूपों कि पहचान करेंगे और उनसे लोहा लेंगे |जेल से भगत का कहा याद रखिए -'क्रन्तिकारी को निरर्थक आतंकवादी कारवाइयो और व्यकितगत आत्म -बलिदान के दूषित चर्क में न डाला जाये |सभी के लिए उत्साह वर्धक आदर्श ,उद्देश्य के लिए मरना न होकर उद्देश्य के लिए जीना -और वह भी लाभदायक तरीके से योग्य रूप में जीना -होना चाहिए |
भगतसिंह और बटुकेश्वर दत ने २२ दिसम्बर १९२९ को जेल से लिखे 'माडर्न रिव्यू 'के सम्पादक को प्रति -उत्तर में इन्कलाब जिंदाबाद नारे को परिभाषित करते हुए क्रांति से जोड़ा -दीर्घकाल से प्रयोग में आने के कारण इस नारे को एक ऐसी विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है ,जो सम्भव है भाषा के नियमो एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध न हो पाए ,परन्तु इसके साथ ही इस नारे से उन विचारो को पृथक नही किया जा सकता ,जो इसके साथ जुड़े हुए हैं |ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीकृत अर्थ का घोतक हैं ,जो एक सीमा तक उनमे पैदा हो गये हैं तथा एक सीमा तक उनमे निहित है |क्रांति (इन्कलाब )का अर्थ अनिवार्य रूप में सशस्त्र आन्दोलन नही होता |बम और पिस्टल कभी कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते है |इसमें भी सन्देह नही है कि कुछ आंदोलनों में बम एवं पिस्टल एक महत्त्व पूर्ण साधन सिद्ध होते है ,परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्टल क्रांति के पर्यायवाची नही हो जाते |विदोढ़ को क्रांति नही कहा जा सकता ,यद्धपि यह हो सकता है कि विदोढ़ का अंतिम परिणाम क्रांति हो |.........क्रांति शब्द का अर्थ 'प्रगति के लिए परिवर्तन कि भावना एवं आकाक्षा है |लोग साधारण तया जीवन कि परम्परा गत दशाओं के साथ चिपक जाते है और परिवर्तन के विचार से ही कापने लगते है |
यह एक अकर्मण्यता कि भावना है , जिसके स्थान पर क्रन्तिकारी भावना जागृत करने कि आवश्यकता हैं।
'क्रांति कि इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थाई तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए ,जिससे की रुदिवादी शक्तिया मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संगठित न हो सके |यह आवश्यक है की पुराणी व्यवस्था सदैव न रहे वह नई व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे ,जिससे की एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके |यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर हम इन्कलाब जिंदाबाद का नारा ऊँचा करते है |

साभार भगतसिंह से दोस्ती पुस्तक से


सुनील दत्ता
09415370672

भगत सिंह

भगत सिंह का पिता के नाम पत्र

भगत सिंह, भगत सिंह के बाबा पिता

३० सितम्बर ,१९३० को भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिबुनल को एक अर्जी देकर बचाव पेश करने के लिए अवसर की मांग की |सरदार किशनसिंह स्वय देशभक्त थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल जाते रहते थे |
पिता द्वारा दी गयी अर्जी से भगत सिंह की भावनाओ को भी चोट लगी थी ,लेकिन अपनी भावनाओ को नियंत्रित कर अपने सिद्धांतो पर जोर देते हुए उन्होंने 4 अक्टूबर 1930 को यह पत्र लिखा जो उसके पिता को देर से मिला | ७ अक्टूबर ,1930 को मुकदमे का फैसला सुना दिया गया |

4 अक्टूबर 1930
पूज्य पिताजी ,
मुझे यह जानकर हैरानी हुई की आप ने मेरे बचाव -पक्ष के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक आवेदन भेजा हैं |यह खबर इतनी यातनामय थी कि मैं इसे ख़ामोशी से बर्दाश्त नही कर सका |इस खबर ने मेरे भीतर कि शांति भंग कर उथल -पुथल मचा दी हैं |मैं यह नही समझ सकता कि वर्तमान इस्थितियो में और इस मामले पर आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं ?
आप का पुत्र होने के नाते मैं आपकी पैतृक भावनाओ का पूरा सम्मान करता हूँ कि आप को साथ सलाह -मशविरा किये बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नही था |आप जानते हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आप से काफी अलग हैं |में आप कि सहमती या असहमति का ख्याल किये बिना सदा स्व्तन्त्र्तापुर्वक काम करता रहा हूँ |
मुझे यकीन हैं कि आपको यह बात याद होगी कि आप आरम्भ से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिश करते हैं कि में अपना मुकदमा संजीदगी से लडू और अपना बचाव ठीक से प्रस्तुत करू| लेकिन आपको यह भी मालूम है कि में सदा इसका विरोध करता रहा हूँ | मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा प्रकट नही की और न ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया हैं |
मेरी जिन्दगी इतनी कीमती नही जितनी कि आप सोचते हैं |कम -से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नही कि इसे सिद्धांतो को कुर्बान करके बचाया जाये |मेरे अलावा मेरे और साथी भी हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन है जितना कि मेरा मुकदमा | हमने सयुक्त योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे | हमे इस बात कि कोई परवाह नही कि हमे व्यक्तिगत रूप में इस बात के लिए कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा |
पिता जी मैं बहुत दुःख का अनुभव कर रहा हूँ |मुझे भय हैं ,आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आप के इस काम कि निन्दा करते हुए मैं कंही सभ्यता कि सीमाए न लाघ जाऊ और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हो जाये |लेकिन में स्पष्ट शब्दों में अपनी बात अवश्य कहूँगा |यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता |लेकिन आप के सन्दर्भ में मैं इतना ही कहूँगा कि यह एक कमजोरी है -निचले स्तर कि कमजोरी |
यह एक ऐसा समय था जब हम सब का इम्तहान हो रहा था |में यह कहना चाहता हूँ कि आप इस इम्तहान में नाकाम रहे है |में जनता हूँ कि आप भी इतने ही देश प्रेमी है जितना कि कोई और व्यक्ति हो सकता हैं |में जनता हूँ कि आपने अपनी पूरी जिन्दगी भारत कि आज़ादी के लिए लगा दी हैं |लेकिन इस अहम मौड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाई ,यह बात में समझ नही सकता |
अन्त में मैं आपसे ,आपके अन्य मित्रो व मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेने वालो से यह कहना चाहता हूँ कि में आपके इस कदम को नापसंद करता हूँ |में आज भी अदालत अपना बचाव प्रस्तुत करने के पक्ष में नही हूँ |अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकर्ण आदि के लिए प्रस्तुत किये गये आवेदन को मंजूर कर लेती , तो भी में कोई स्पष्टीकर्ण प्रस्तुत न करता |
मैं चाहूँगा की इस समबन्ध में जो उलझने पैदा हो गयी हैं ,उनके विषय में जनता को असलियत का पता चल जाये |इसलिए में आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप जल्द से जल्द यह चिठ्ठी प्रकाशित कर दें |

आपका आज्ञाकारी
भगत सिंह

सुनील दत्ता
9415370672

Monday 28 March 2011

अजीब थी वो
मुहब्बतों की गीत थी , बगावतों की राग थी
कभी
वो सिर्फ फूल थी , कभी वो सिर्फ आग थी
अजीब थी वो

वो मुफलिसों से कहती थी
की दिन बदल भी सकते है
वों जाबिरों से कहती
तुम्हारे सर पे सोने का जो ताज है
कभी पिघल भी सकते है
वो बंदिशों से कहती
की में तुमको तोड़ सकती हूँ
सहूलतों से कहती
की में तुमको छोड़ सकती हूँ
हवाओं से वो कहती की में तुमको मोड़ सकती हूँ
वो ख्वाबों से कहती
की में तुमको सच करूंगी
अजीब थी वो
कभी आग थी वो
कभी फुल थी वो
अजीब थी वो..!
एक तुम्हारा होना

क्या से क्या कर देता है

बेजुबान छत दीवारों को

घर कर देता है

खाली शब्दों में

आता है

ऐसा अर्थ पिरोना

गीत बन गया सा

लगता है

घर का कोना कोना

एक तुम्हारा होना

सपनों को स्वर देता है

आरोहों अवरोहों से

समझाने

लगती है

तुमसे जुड़कर
चीज़ें भी

बतियाने लगाती है
एक तुम्हारा होना

अपनापन भर देता है

एक तुम्हारा होना

क्या से क्या कर देता है
नील
वो जब भी मिलती है
एक अनलिखी नज्म नजर आती है.
मैं इस अनलिखी नज्म को
कई बार लिख चुका हूं.
फिर भी हर बार
यह अनलिखी ही रह जाती है.
हो सकता है
यह अनलिखी नज्म
लिखने के लिए
हो ही ना,
सिर्फ जीने के लिए हो.